गुड्डू कुमार सिंह/13वें शिक्षक सम्मान समारोह में एशोसियेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सैयद शमायल अहमद जी के द्वारा आमंत्रित था जिसमें उद्घाटनकर्ता के रूप में बिहार के पुलिस महानिदेशक विनय कुमार जी तथा बिहार के सभी जिलों से आए शिक्षाविद उपस्थित थे । समारोह को संबोधित करते हुए मैंने कहा कि 2047 तक विकसित भारत में एक विकसित बिहार के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है चूंकि हमारे समक्ष चुनौतियाँ अत्यंत गंभीर हैं । भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा हाल में साझा किए गए डाटा की चर्चा करते हुए मैंने कहा कि हम निश्चित ही प्रसन्न एवं आशान्वित हो सकते हैं कि बिहार आज अत्यंत तीव्रता के साथ विकसित हो रहा है और स्थाई मूल्य पर जहाँ वृद्धि दर 8.64% है, वहीं वर्तमान मूल्य पर 13.09 % है, जो भारत में द्वितीय है और प्रति व्यक्ति आय भी 2023-24 में 68624 रुपये से 2024-25 में 76490 तक पहुंच गया है परंतु जब अन्य राज्यों से हम तुलना करेंगे तब ही हम वास्तव में समझ सकेंगे कि आर्थिक विकास की यात्रा में हम कितने पीछे हैं और विकसित भारत के स्वप्न के लिए कितनी लंबी दूरी हमें अभी मिलकर तय करनी बाकी है ।
आगे बिहार की आर्थिक चुनौती को समझाते हुए मैंने सभी को बताया कि वर्तमान में बिहार में औसत प्रति व्यक्ति मासिक आय बीते वर्ष के ₹5,718 से बढ़ने के उपरांत भी केवल ₹6,374 ही है, जो राष्ट्र में सबसे कम है । दिल्ली में यह ₹46,060, तेलंगाना में ₹35,644, कर्नाटक में ₹35,154, तमिल नाडु में ₹33,653, हरियाणा में ₹32,861, महाराष्ट्र में ₹29,527, केरल में ₹28,869, उत्तराखंड में ₹26,657, हिमाचल प्रदेश में ₹25,651 और आंध्र प्रदेश में ₹24,838 है । हमारे पड़ोसी पश्चिम बंगाल में ₹15,148, झारखंड में ₹10,687 और उत्तर प्रदेश में ₹10,353 है । ऐसे पिछड़ेपन की स्थिति में निश्चित ही यह अत्यंत सुखद है कि बिहार का विकास दर वर्तमान एवं स्थाई मूल्यों पर अनेक राज्यों की तुलना में आज अत्यंत अग्रणी है परंतु बिहार की अर्थव्यस्था ही ऐसे पिछड़ेपन की दुर्दशा से ग्रसित रही है कि यदि 15% के दर से भी हम आगे बढ़ते रहे तो भी 5 वर्ष पश्चात 2030 में हमारी प्रति व्यक्ति आय मात्र ₹12,820 के आसपास और 10 वर्ष के पश्चात 2035 में भी मात्र ₹25,786 के आसपास ही होगी, जिसके आगे आज ही भारत के अनेक राज्य हैं । 15% के दर पर वृद्धि कितनी चुनौतीपूर्ण है यह समझना तो अपने-आप में अत्यंत सुलभ है और वह भी तब जब समाज जाति-संप्रदाय आदि लघुवादों के खंड-खंड में बंटा हो और राजनीति भी इन्हीं खंडों के समीकरणों पर आधारित हो ।
बिहार को विकसित करने के लिए केवल राजनीतिक नहीं अपितु एक व्यापक सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की आवश्यकता है । हमें स्मरण रखना होगा कि बिहार की वर्तमान लगभग 14 करोड़ जनसंख्या में से 30 वर्ष से अल्पायु के 9 करोड़ से अधिक युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना आसान नहीं है और केवल सरकारी नौकरियों के माध्यम से यह कदापि संभव नहीं है । यह अत्यंत आवश्यक है कि हमारे युवा बड़ी संख्या में ‘जॉब-सीकर’ न बनकर ‘जॉब-क्रिएटर’ बनें । उद्यमिता की क्रांति ही हमें विकसित अर्थव्यवस्था का स्वरूप दे सकती है जिसके लिए बिहार में हमें एक ऐसे इकोसिस्टम का निर्माण करना होगा जिसमें स्टार्ट-अप्स को आवश्यक संसाधन, मार्गदर्शन एवं समर्थन मिल सके । हाल में बिहार सरकार द्वारा आयोजित हो रहा आइडिया फेस्टिवल और औद्योगिक निवेश हेतु भूमि अधिग्रहण के सरलीकरण एवं प्रोत्साहन के निर्णय इस परिवर्तन के लिए सही वातावरण के निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक एवं सराहनीय पहल हैं । बिहार से पलायन पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अन्य राज्यों से इस व्यापक आर्थिक अंतर को हमें 2047 तक दूर करना होगा ।
LetsInspireBihar के अंतर्गत 24 अगस्त, 2025 को पटना में आयोजित हुए ‘स्टार्ट-अप समिट 2025’ में इन्हीं चुनौतियों के अनुरूप विजन डाक्यूमेंट रिलीज किया जा चुका है और जिसे सभी अभियान के वेबसाइट से प्राप्त कर देख सकते हैं । मैंने सभी से कहा कि यदि सकारात्मक उर्जा से साथ जाति, संप्रदाय, लिंगभेद आदि लघुवादों से परे उठकर राष्ट्रहित में शिक्षा, समता और उद्यमिता के विकास हेतु हमने मिलकर योगदान किया तो निश्चित ही यह संभव है । इसी उद्देश्य के साथ 2,50,000+ संकल्पित बिहारवासी आज जाति-संप्रदाय, लिंगभेद और
विचारधारात्मक मतभेदों से परे उठकर #LetsInspireBihar अभियान के माध्यम से राष्ट्रहित में योगदान समर्पित करने हेतु प्रयासरत हैं । शिक्षकों के संकल्पित अंशदान से निश्चित ही लक्ष्य को हम प्राप्त कर सकेंगे । यात्रा गतिमान है !








